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Perché il primo ministro Indira Gandhi ha annunciato di emergenza in India? -Hindi Smachar da Yathavat Magazine
लोकतंत्रका गला घोंटकर 26 जून 1975 को तत्कालीन primeminister Indira Gandhi ने emergenza लगा दी थी. तानाशाही थोप दी गई थी. 25 जून की आधी रात के बाद लोकनायक Jai Prakash Narayan को पुलिस गिरफ्तार करने पहुंची. वे GandhiPeace Fondazione में ठहरे हुए थे. उन्हें जगाया गया. गिरफ्तारी पर उनकी पहलीप्रतिक्रिया थी- 'विनाश काले विपरीत बुद्धि.' उनकीगिरफ्तारी की खबर पाकर congresso के बड़े नेता Chandra Shekhar संसद मार्ग थाने पहुंचे. उन्हें भी गिरफ्तार किया गया. उसरात गैर के Comunità विपक्ष बड़े नेताओं को जगह-जगह polizia से पकड़ती रही. उस रात हजारों लोग बंदी बनाकर काल कोठरी में डाल दिए गए. वह emergenza लगाने से पहले की एहतियाती कार्रवाई थी. Emergenza तो अगले दिन घोषित की गई. लेकिन जिस तरह बड़े नेताओं को गिरफ्तार किया गया, उसी तरह देशभर के ज्यादातर अखबारों की बिजली काट दी गई. जिससे वे लोगों कोतानाशाही थोपने के कदम की सूचना न दे पाएं. राष्ट्रीयस्वयंसेवक संघ सहित अन्य 25 संगठनों पर पाबंदी लगा दी गई. संघ पर पाबंदी लगानेसे पहले 30 जून 1975 को राष्ट्रीयस्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक बाला साहब देवरस को stazione Nagpur पर बंदी बना लिया गया. यह कलंकपूर्ण घटना 40 साल पहले की है. तब सेदो-तीन पीढ़ियों का फासला हो गया है. नईपीढ़ी के सामने सबसे पहला सवाल यह आएगा कि emergenza क्यों लगाई गई? इसके दो राजनीतिक उत्तर हैं. पहला Indira congresso का अपना कथन है तो दूसरा उनका है जो लोकतंत्रकी वापसी के लिए जेपी की अगुवाई में लड़े और जीते. इंदिरा कांग्रेस का कहा माने तो emergenza जरूरी थी. क्या इसमें कोई सच्चाई है? emergenza का असली कारण वह नहीं था, जिसे Indira Gandhi बताती थीं.असली कारण जानने के लिए थोड़ा और पीछे जाना होगा. 1971 में Indiragandhi रायबरेली से लोकसभा के लिए चुनी गई थीं. उनके प्रतिद्वंद्वीथे, Rajnarayan. चुनाव में धांधली और प्रधानमंत्री पद केदुरुपयोग का आरोप लगाकर Rajnarayan ने Allahabad highcourt में एक चुनाव याचिका दायर की. जबमुकदमा सुनवाई पर आया तो कयास लगाया जाने लगा कि अगर Indiragandhi हार जाती हैं तो वे क्या करेंगी. आखिरकार वह दिन आ ही गया. 12 जून 1975 को करीब 10 बजे allahabadhigh के corte जज Jagmohan lal sinha ने फैसलासुनाया. Rajnarayan जीते. Indira Gandhi मुकदमा हार गईं. 6 साल के लिए उनकी लोकसभा सदस्यताचली गई. जज ने Suprema corte में मुकदमा सुने जाने तक अपनेफैसले के अमल पर रोक लगा दी. Jagmohanlal sinha के फैसले पर corte suprema कादरवाजा खटखटाने के लिए Indira Gandhi को 12 दिन का समय मिल गया. Corte suprema में गर्मी कीछुट्टियां थी. जैसा कि होता है, ऐसे समय में एक जज जरूरी कामनिपटाता है. उन दिनों यह काम vr krishna Iyer के पास था. वे corte suprema में तब 'वेकेशन' जज थे. 24 जून को उन्होंने Indira Gandhi को थोड़ी राहत दी. वे फैसला आने तक सदस्यबनी रह सकती थीं, लेकिन लोकसभा के Registrati पर दस्तखत करने पर पाबंदी लगा दी. . वे लोकसभा की कार्यवाही में भी हिस्सानहीं ले सकती थीं जाहिरहै, Indira Gandhi को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत नहींमिली. उनका primo ministro पद खतरे में पड़ गया. मुकदमा हारनेऔर corte suprema से राहत न पाने के कारण Indira Gandhi की नैतिक पराजय हो गई. इसे वे पचा नहीं पाईं. यही वह असली कारण है किउन्हें अपनी कुर्सी बचाने के लिए बड़ा दाव चलना पड़ा. यह उनकी मजबूरी नहीं थी. उनकेराजनीतिक चरित्र की इसे मजबूती भी नहीं कहेंगे. सत्ता से चिपके रहने की यह उनकीलालसा थी. वहपरिस्थिति कैसे पैदा हुई? इसे समझने के लिए उस दौर की महत्वपूर्ण राजनीतिकघटनाओं को गौर से देखना चाहिए. Indira Gandhi 'गरीबी हटाओ' के नारे से 1971 की लोकसभा में प्रचंड बहुमत पाकर आई थीं. उनसे बड़ी उम्मीदें थी. लेकिन साल डेढ़ सालनहीं लगे और लोग महंगाई, भ्रष्टाचार, शासनके अत्याचार और अनैतिकता से उबने लगे. विरोध में आवाजें उठने लगीं. आंदोलन खड़ेहुए. जिसका नेतृत्व लोकनायक Jayaprakash narayan कर रहे थे.आंदोलन राष्ट्रव्यापी बनता जा रहा था. आंदोलनअहिंसक था. लोकतांत्रिक था. उसका नारा था- संपूर्ण क्रांति. आंदोलन में छात्र-युवा, विपक्षी दल, उनके जनसंगठन और Gandhi धारा के सामाजिककार्यकर्ता बड़ी संख्या में सक्रिय थे. आजादी के बाद मुख्यधारा का वह सबसे बड़ाआंदोलन था. उस आंदोलन के नेतृत्व से Indira Gandhi संवाद बनासकती थीं. इसके ठीक विपरीत उन्होंने टकराव का रास्ता चुना. suprema corte से 24 जून को Indira Gandhi निराशलौटीं. अगले दिन उन्हें तत्काल एक बहाना मिल गया. सत्ता की राजनीति जब अपनी कुर्सीबचाने में सिमट जाए तो ऐसे बहाने बहुत खतरनाक साबित होते हैं. पहलेयह जानें कि Indira Gandhi को बहाना क्या मिला. 25 जून 1975 को रामलीला मैदान में आंदोलन के समर्थनमें बड़ी सभा थी. उसमें जेपी का भाषण हुआ. उन्होंने वहां जो कहा उसे सरकार नेतोड़-मरोड़कर पेश किया. Indira Gandhi ने आरोप लगाया कि जेपीसेना में बगावत कराना चाहते थे. इसलिए आंतरिक सुरक्षा को बनाए रखने के लिए लगानी emergenza पड़ी Indiragandhi का दावा निराधार था. अगर वे इस्तीफा दे देतीं और Congresso कीसंसदीय पार्टी किसी को उनकी जगह नेता चुन लेतीं तो emergenza की जरूरत ही नहीं पड़ती. यह हो सकता था. लेकिन इसके लिए जरूरी था कि congressparty एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अपनाए. Indira Gandhi ने 1969 में congresso कोतोड़ा. उस समय के अनुभवी नेताओं से मुक्ति पाने के लिए और अपनी मनमानी चलाने के लिएउन्होंने जो पद्धति अपनाई उसमें यह संभव ही नहीं था कि वे पद छोड़ने का विचार करतींऔर कोई दूसरा व्यक्ति primo ministro बनता. sanjaygandhi के उदय ने इस रास्ते को बंद ही कर दिया था. Emergenza लगवाने में Sanjay Gandhi की बड़ी भूमिका थी.रामलीला मैदान में जेपी की सभा से पहले ही Indira Gandhi presidente Fakhruddin Ahmed Ali से मिलने गईं. उनके साथ पश्चिमबंगाल के तत्कालीन primo ministro siddharth shankarray थे. रास्ते में Indira Gandhi ने उनसेपूछा कि बिना मंत्रिमंडल की बैठक बुलाए emergenza कैसे लगाईजा सकती है, इसका कानूनी रास्ता खोजिए. ray siddharthshankar ने थोड़ा वक्त मांगा और शाम को वह नुस्खा बता दिया. उसीआधार पर बिना मंत्रिमंडल की बैठक बुलाए emergenza की घोषणा पर Presidente Fakhruddin Ahmed Ali से दस्तखत कराया गया. इसके लिए वे राजी नहींथे, पर दबाव में आ गए. 26 जून 1975 की सुबह मंत्रिमंडल के सदस्यों को जगाकरबैठक की गई. जिसमें Indira Gandhi ने emergenza लगाने के फैसले की जानकारी दी. सिर्फ sardar Swaran Singh ने, वह भी बहुत दबी जुबान से अपना एतराज जताया. Emergenza की घोषणा से निरंकुश शासन का दौर शुरू हुआ. वह आजाद भारत की काली रात बनगई. लगता था कि कभी लोकतंत्र लौटेगा नहीं. Emergenza का अंधेराबना रहेगा. उस दौर में जुल्म और ज्यादतियों के हजारों लोग शिकार हुए. फिर भीलोकतंत्र की वापसी के लिए भूमिगत संघर्ष चला. उससे एक चेतना फैली. दुनिया में जनमतबना. जिसके दबाव में Indira Gandhi को झुकना पड़ा. लोकसभाके चुनाव की घोषणा हुई. Emergenza में ही चुनाव कराने की चाल Indiragandhi ने इसलिए चली किउन्हें अपनी विजय का विश्वास था. वे अपनी तानाशाही पर लोकतंत्र की मुहर लगवानाचाहती थी. लेकिन चुनाव परिणाम ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. Indira Gandhi अपनी सीट भी नहीं बचा पाईं.मंत्रिमंडल का इस्तीफा सौंपने से पहले Indira Gandhi ने को emergenza हटाया .
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